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में झू का मेला, 700 वर्ष पुरानी है यहां परंपरा, ऐसे मनाते हैं होली

आगरा। आगरा से सटे कस्बा जगनेर के सरैंधी गांव में होली की करीब 700 वर्ष पुरानी परंपरा है, जो आज भी बेहद लोकप्रिय हैं। इसमें पूरे क्षेत्र के लोग जुटकर खास तरह से होली मनाते हैं, जिसे झू का मेला कहा जाता है। इसमें 24 मुहल्ले (थोक) और छह पार्टियां मिलाकर 30 गुट एक प्राचीन दरवाजे पर जुटते हैं। सभी दरवाजे के दोनों ओर दो भागो में बंटकर दरवाजे निकलने का प्रयास करते हैं, जबकि अन्य ग्रामीण उन पर रंग डालते है।  ग्रामीणों के विवाद सुलझाते थे। होली की पड़वा को दरबार में झू का विशेष दंगल होता था। गुलाल होली खेलने के बाद सभी हुरियारे नहा धोकर लंगोट पहनकर अपने घरों के बाहर खड़े हो जाते है।

गांव का नट ढोल-नगाड़ा बजाते हुए पूरे गांव की परिक्रमा करता है, जिसके बाद लोग नट के पीछे जुड़ते हुए बाबा अचलम के दरबार में पहुंचते हैं। दरबार के बीचों बीच बने गेट में सभी दो भागों में बंट जाते है और दोनों भागों में बंटकर शक्ति प्रदर्शन करते है। इसमें दरबार के गेट की दूसरे हिस्से में एक गुट को तीन बार गुजरना पड़ता है, सभी गुट एक-दूसरे को अपने हिस्से में आने से रोकने का प्रयास करते हैं।

विजय के लिए एक गुट को दूसरे गुट को पीछे करते हुए उसके भाग में दो बार जाना पड़ता है। उत्साहवर्धन के लिए सभी के ऊपर पानी की बौछार की जाती है, जिसे बाबा अचलम का आशीर्वाद समझा जाता है। इस अनोखे दंगल को देखने के लिए आसपास के गांवों के हजारों लोग जुटते हैं। होली के दिन गांव के राजा वीरेंद्र सिंह गांव के अचलम बाबा मंदिर के सामने पुराने मंच पर बैठकर न्याय और गांव के आगामी विकास कार्यों पर चर्चा करते थे। यह परंपरा आज भी जारी है। अब उनके वंशज गांव के विकास की चर्चा करते हैं और फिर संपूर्ण गांव में दूज का पर्व मना कर होली के त्योहार का समापन होता हैं।

दूज के अगले दिन तीज पर पूरे गांव में झांकियां निकाली जाती हैं। तीन दिन तक चलता है होली उत्सव होली मतभेद भुलाकर गले और दिल मिलाने का त्योहार है, खंदौली गांव में होली का उत्सव तीन दिन तक चलता है, जिसमें गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक अपनी सहभागिता निभाते हैं। खंदौली के गांव नहर्रा में होली पर बुजुर्ग चौपाल पर बैठते हैं। सुबह से ही एक-दूसरे से मिलने को लोगों का आवागमन शुरू हो जाता है।

ग्राम पंचायत के अन्य मजरों के लोग इकट्ठे होकर पहले नहर्रा में पहुंचते हैं, यहां एक-दूसरे से गले मिलकर रंग और गुलाल लगाकर होली खेली जाती है। इसके बाद नहर्रा गांव के सभी घराें के बड़े और बच्चे मिलकर ग्राम पंचायत के अन्य मजरों में चौपालों में जाते हैं। मेल-मिलाप का यह दौर यहां यहां आज इसलिए भी जारी है क्योंकि सभी होली के दिन आपसी रंजिश भुलाकर एक हो जाते हैं।