सत्यजीत रे, जिन्हें फिल्मों और लेखन के माध्यम से देश की सच्ची और मार्मिक तस्वीर प्रस्तुत करने वाले एक विश्व विख्यात फिल्म निर्माता माना जाता है, का जन्म 2 मई 1921 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कुल 29 फिल्में और 10 डाक्यूमेंट्री बनाई थीं। सत्यजीत रे की “पाथेर पांचाली” एक आदर्श फिल्म मानी जाती है और उन्होंने भारतीय सिनेमा को दुनिया में पहचान दिलाई। उन्होंने 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के विजेता के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आइए, इस महान व्यक्ति की जीवनी को समझते हैं:
- नाम: सत्यजीत रे
- जन्म तिथि: 2 मई 1921
- जन्म स्थान: कोलकाता, पश्चिम बंगाल
- पिता का नाम: सुकुमार रे
- माता का नाम: सुप्रभा रे
- पत्नी का नाम: ज्ञात नहीं
- पेशा: फिल्म निर्माता
- बच्चे: ज्ञात नहीं
- मृत्यु: 23 अप्रैल 1992, कोलकाता
जीवन सफ़र ( Satyajit Ray Career Story)
1949 में सत्यजीत रे की मुलाकात फ्रांसीसी निर्देशक जां रेनोआ से हुई. वे उस वक्त अपनी फिल्म द रिवर की शूटिंग के लिए लोकेशन की तलाश में कलकत्ता आए थे. सत्यजीत रे ने रेनोआ की मदद की थी. उनके साथ समय बिताके रेनोआ को एहसास हो गया था की रे में फिल्मकार बनने की भी प्रतिभा है. उन्होंने अपने मन की बात रे से कही भी थी.
उन्होंने कलकत्ता की एक विज्ञापन कंपनी के लिए कुछ दिनों तक काम किया था. इसी दौरान उनके काम से खुश होकर कंपनी ने उन्हें 1950 में यूरोप के टूर का पुरस्कार दिलाया. फिल्में देखना और फिल्मों के बारे में जानना उन्हें बेहद पसंद था. इसलिए उन्होंने लन्दन फिल्म क्लब की सदस्यता ले ली और फिल्में देखने लगे. लंदन में उन्होंने ‘बाइसिकल थीब्स’ और ‘लूसिनिया स्टोरी एंड अर्थ’ ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और उन्हें इससे फिल्मों की ताकत का एहसास हुआ ज्यां रिनोर की ‘द रिवर’ देख कर तो वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्मकार बनने का निश्चय कर लिया.
अक्टूबर 1952 में सत्यजित रे ने फिल्म बनाने का निर्णय लिया. पैसो की कमी के कारण फिल्म अधबीच में रुक गई. तीन साल के ठहराव के बाद पश्चिमी बंगाल सरकार की वित्तीय सहायता से फिल्म पूरी हुई. फिल्म निर्माण कार्य में यह उनका पहला प्रयास था. वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ कोलकाता के सिनेमाघर मे लगभग 13 सप्ताह हाउसफुल रही. इस फिल्म को 11 इंटरनेशनल अवार्ड प्राप्त हुए थे. इस फिल्म की एक ख़ास विशेषता यह है की इस फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं लिखी गई थी, रे ने इसके लिए कुछ नोट्स लिए थे और ड्रॉइंग्स की थी. यह फिल्म बनाने के लिए रे ने अपनी बीमा पॉलिसी, ग्रामोफोन रिकॉर्ड और पत्नी विजया के जेवर बेच दिए थे. वे कहते थे की, “मुझे पश्चिमी और भारतीय शास्त्रीय संगीत दोनों में रुचि थी. मैं हर समय पश्चिमी वाद्य यंत्रों के साथ भारतीय वाद्य यंत्रों का मिश्रण करता हूं”.
सत्यजित कहते थे, “मेरी फिल्में केवल बंगाल में ही चलती हैं और मेरे दर्शक छोटे शहरों में स्थित शिक्षित मध्यम वर्ग है. मेरी फिल्में बॉम्बे, मद्रास और दिल्ली में भी चलती हैं क्योकि वहां भी बंगाली आबादी है”. उन्होंने यह भी कहा है कि “पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध है, इसलिए हमारे फिल्मों का आधा बाजार चला गया हैं”. उनकी कुछ फिल्मे नाकाम भी रही है, इसपर उन्होंने कहा है कि, “विशेष रूप से फिल्मों के अंतिम चरण में मुझे हमेशा लगता है कि मैं हडबडा रहा हूं. जब आप अंतिम चरण में पहुंच रहे हो तो यह खतरनाक है, मेरे पहले की कुछ फिल्में केवल इसी कारण दोषपूर्ण रही हैं”.
जाने-माने फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का मानना है कि भारतीय सिनेमा को हमेशा ‘सत्यजीत रे के पहले और बाद’ के रूप में जाना जाएगा और ‘पाथेर पांचाली‘ के निर्देशक के फिल्म निर्माण की तकनीक का अनुकरण कोई फिल्म निर्देशक नहीं कर पाया है.
सत्यजीत रे की कुछ बेहतरीन फिल्में (Satyajit Ray Films)
- पथेर पांचाली (1955)
- अपराजितो (1956)
- जलसा घर (1958)
- अपुर संसार (1959)
- कंचनजंघा (1962)
- अभियान (1962)
- चिड़ियाखाना (1967)
- घटक की अजांत्रिक (1958)
- भुवन शोम (1969)
साहित्यिक कृतियाँ ( Literary works )
- रे ने बांग्ला भाषा के बाल-साहित्य में दो लोकप्रिय चरित्रों की रचना की जैसे गुप्तचर फेलुदा (ফেলুদা) और वैज्ञानिक प्रोफेसर शंकु.
- सत्यजीत रे को पहेलियों और बहुअर्थी शब्दों के खेल से बहुत प्रेम था. इसे इनकी कहानियों में भी देखा जा सकता है.
- रे ने 1982 में जखन छोटो छिलम (जब मैं छोटा था) यह आत्मकथा लिखी.
- इन्होंने फ़िल्मों के विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें से प्रमुख है आवर फ़िल्म्स, देयर फ़िल्म्स (Our Films, Their Films, हमारी फ़िल्में, उनकी फ़िल्में).
- 1976 में ही इन्होंने चलचित्र नामक एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर इनके चिंतन का संक्षिप्त विवरण है.
- एकेई बोले शूटिंग यह पुस्तक और फिल्मों पर अन्य निबंध भी प्रकाशित हुए हैं.
- रे ने कविताओं का एक संकलन तोड़ाय बाँधा घोड़ार डिम भी लिखा है, जिसमें लुइस कैरल की कविता जैबरवॉकी का अनुवाद भी शामिल है.
- इन्होंने बांग्ला में मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियों का संकलन भी प्रकाशित किया है.
सम्मान और पुरस्कार ( Satyajit Ray Honors and Awards)
- पद्मश्री (1958)
- पद्म भूषण (1965)
- रमन मैग्सेसे पुरस्कार (1967)
- स्टार ऑफ यूगोस्लाविया (1971)
- डॉक्टर ऑफ लैटर्स (1973)
- डी. लिट (रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट्स, लंदन- 1974)
- पद्म विभूषण (ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय – 1976)
- विशेष पुरस्कार (बर्लिन फ़िल्म समारोह – 1978 )
- विशेष पुरस्कार (मॉस्को फ़िल्म समारोह – 1979)
- डी. लिट. (बर्द्धमान विश्वविद्यालय, भारत – 1980 )
- डी. लिट. (जादवपुर विश्वविद्यालय, भारत – 1980)
- डॉक्टरेट (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, भारत – 1981)
- डी. लिट. (उत्तरी बंगाल विश्वविद्यालय, भारत – 1981)
- होमाज़ अ सत्यजित राय (कान्स फिल्म समारोह – 1982)
- विशेष गोल्डन लायन ऑफ सेंट मार्क (वैनिस फ़िल्म समारोह – 1982)
- विद्यासागर पुरस्कार (पश्चिम बंगाल सरकार – 1982)
- फ़ैलोशिप पुरस्कार (ब्रिटिश फ़िल्म संस्था – 1983)
- डी. लिट. (कलकत्ता विश्वविद्यालय, भारत – 1985)
- दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (1985)
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1985)
- फ़ैलोशिप पुरस्कार (संगीत नाटक अकादमी, भारत – 1986)
- डी. लिट. (रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, भारत – 1987)
- ऑस्कर (मोशन पिक्चर आर्टस एवं विज्ञान अकादमी – 1992)
- भारतरत्न (1992)
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