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उन्नाव में सरकारी जमीन पर मचा कब्जे का खेल! लेखपाल बने भूमाफिया, अफसरों ने बजाया लीपापोती का ढोल


शिकायतें गूंजीं, अफसर सोते रहे!

उन्नाव शहर के गदनखेड़ा इलाके में सरकारी जमीन पर भूमाफियाओं का कब्जा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस गोरखधंधे में वे लोग भी शामिल हैं जिन पर राजस्व जमीन की हिफाजत की जिम्मेदारी थी — यानी खुद लेखपाल!
शिकायतें शासन तक पहुँचीं, फिर भी नतीजा ढाक के तीन पात। सरकारी जमीन को चाट रहे इन भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ न कोई सख्त कार्रवाई हुई, न कोई ढंग की जांच।

जमीन निगलते लेखपाल, चुप्पी साधते अधिकारी

शिकायत के बाद उपजिलाधिकारी उन्नाव की जॉइंट मजिस्ट्रेट डायरेक्ट आईएएस नूपुर गोयल (एसडीएम सदर) ने जांच के आदेश तो दिए, लेकिन जांच भी उसी तरीके से हुई जैसे मियां-मिट्ठू अपने आप को निर्दोष बताते हैं।
तहसील सदर के राजस्व कर्मियों ने नायब तहसीलदार अनुपमा सिंह की अगुवाई में कानूनगो कमलेश कुमार और एक अन्य कर्मचारी के साथ मिलकर मौके का निरीक्षण किया, लेकिन हकीकत को छुपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

पैमाइश का खेल: सड़क से नापी जमीन, कब्जेदार बचे!

जांच टीम ने सरकारी जमीन की पैमाइश सड़क के बीच से शुरू कर दी। मकसद साफ था — कब्जेदारों को बचाना और असली गड़बड़ियों पर परदा डालना।
स्थलीय जांच में सामने आया कि लेखपाल मनोज कान्त ने पशुचर (गाटा संख्या 871) भूमि के पांच फुट हिस्से पर अवैध रूप से मकान बना रखा है। बाकी का मकान नगर पालिका की जमीन बताकर पल्ला झाड़ लिया गया।
इसी तरह, लेखपाल रामकुमार द्वारा ऊसर जमीन (गाटा संख्या 714/2) पर कब्जे की शिकायत को भी गोलमोल जवाब देकर रफा-दफा कर दिया गया।

लेखपालों का मकान महल बन गया, सरकारी जमीन का नामोनिशान मिट गया!

पुराने रिकार्ड खोलें तो पता चलता है कि गाटा संख्या 871 की भूमि पर पिछले 10 वर्षों में धीरे-धीरे पूरी बस्ती खड़ी कर दी गई। रहीश अहमद, शिशुलेख त्रिवेदी, कमला मार्बल, मुशीर अहमद, लियाकत, मोहम्मद यूनुस जैसे लोगों ने सरकारी जमीन पर आलीशान मकान और दुकानें खड़ी कर लीं।
इन अवैध कब्जों पर पहले भी मुकदमे हुए — लेकिन सब फाइलों में धूल फांकते रहे।
उप्र राजस्व संहिता की धारा-67 के तहत बेदखली के वाद दर्ज तो हैं, पर कार्रवाई नदारद है।

नगर पालिका और तहसील की मिलीभगत से हो रहा कब्जा!

शिकायतकर्ता रामजीवन सोनकर का आरोप है कि सदर तहसील के राजस्व कर्मी सीमांकन विवाद का बहाना बनाकर कब्जेदारों को बचाते हैं।
नगर पालिका परिषद, उन्नाव के अधिकारी भी इस गोरखधंधे में बराबर के हिस्सेदार हैं।
भूमि संख्या 714/2 जो ऊसर जमीन थी, उस पर कब्जा करने की कोशिशें भी तेज हैं। मौका मुआयना में दिखाया गया कि भूमि पर 'पानी भरा है', यानी कब्जे से बचाने के नाम पर असलियत को छिपाया गया।

शासन की मंशा को दिखाया ठेंगा, भू-माफिया राज बहाल

प्रदेश सरकार ने भूमाफिया के खिलाफ अभियान छेड़ा था। लेकिन उन्नाव में अफसरों और लेखपालों ने शासन की नीतियों को मजाक बना दिया।
सरकारी पशुचर भूमि को लीलने में राजस्व कर्मचारी खुद ही अगुआ बन गए और नियम-कानून ताक पर रख दिए गए।
उधर, शिकायतकर्ता दर-दर भटक रहा है, लेकिन तहसील व नगर पालिका की मिलीभगत से भूमाफिया दिन दोगुनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं।

कब्जे पर कब्जा, कार्रवाई में लीपापोती!

अधिकारी भले ही अपनी आख्या में कार्रवाई का दावा कर रहे हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है।
उपजिलाधिकारी कार्यालय की तरफ से नगर पालिका को पत्र भेजकर पल्ला झाड़ने का काम किया गया।
आखिर सवाल उठता है — जब जमीन पर अवैध कब्जे हैं, तो उन्हें खाली क्यों नहीं कराया गया? क्यों वर्षों पुराने कब्जेदार अब भी कब्जा जमाए बैठे हैं? क्या यही है शासन का "भूमाफिया मुक्त प्रदेश" का सपना?

शिकायतकर्ता की गुहार: दूसरे तहसील के कर्मचारियों से कराई जाए निष्पक्ष पैमाइश

शिकायतकर्ता ने मांग की है कि गदनखेड़ा अ0न0पा0 की सरकारी भूमि संख्या 871 व 714/2 की निष्पक्ष पैमाइश किसी अन्य तहसील के राजस्व कर्मियों से कराई जाए और भूमाफियाओं से जमीन मुक्त कराई जाए।
अन्यथा, यदि यही रवैया रहा तो उन्नाव में सरकारी जमीनों पर भूमाफिया यूं ही कब्जा करते रहेंगे और अधिकारी आंख मूंदे रहेंगे।

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