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उन्नाव में बढ़ता प्रदूषण: आखिर कौन है जिम्मेदार?

प्रशांत त्रिपाठी | विशेष रिपोर्ट | उन्नाव

उन्नाव, जो कभी अपनी गंगा घाटों, हरियाली और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता था, आज प्रदूषण की गिरफ्त में कराह रहा है। हवा में घुलता ज़हर, गंगा में गिरता गंदा पानी और सड़कों पर बिखरा कचरा—इन सबके बीच एक बड़ा सवाल उठता है: कौन है जिम्मेदार?

विकास की बात करने वाले नेता अब चुप हैं, और प्रशासनिक मशीनरी आंख मूंदे बैठी है। जनता की सांसें जहरीली हो रही हैं, लेकिन जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं।

विधायक की खामोशी, जनता का रोष

वर्तमान विधायक ने चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे किए थे—उन्नाव को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने की कसमें खाई थीं। लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि प्रदूषण पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। क्या विधायक अब अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ चुके हैं?

स्थानीय लोगों का कहना है कि विधायक अब विकास की बात छोड़, केवल अपने राजनीतिक एजेंडे में व्यस्त हैं। जब स्लॉटर हाउस, फैक्ट्रियों और गंदे नालों से निकलने वाला ज़हर हवा और पानी में घुल रहा है, तो विधायक की चुप्पी जनता को खल रही है।

स्लॉटर हाउस: प्रदूषण का गढ़ या 'कमाई' का ज़रिया?

उन्नाव के स्लॉटर हाउस की स्थिति किसी से छिपी नहीं। यहां रोजाना सैकड़ों जानवरों का अवैध तरीके से वध किया जाता है, और उसका अपशिष्ट बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे नालियों और गंगा में छोड़ा जाता है। इस अवैध कारोबार से हर महीने लाखों रुपये की कमाई होती है—लेकिन सवाल ये है कि ये पैसे जाते कहां हैं?

स्थानीय सूत्रों का कहना है कि इस गोरखधंधे में प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। सवाल यह भी उठता है कि क्या इस खेल में किसी "बड़े हाथ" का आशीर्वाद है? क्या विधायक की अनदेखी जानबूझकर है या किसी 'समझौते' का हिस्सा?

प्रशासन की चुप्पी, डीएम की भूमिका पर सवाल

जिलाधिकारी, जो जिले का सबसे बड़ा प्रशासक होता है, उनकी भूमिका भी संदिग्ध दिखती है। क्या डीएम कार्यालय तक प्रदूषण की शिकायतें नहीं पहुंच रही हैं? या फिर उन्हें 'ऊपर' से निर्देश मिला है कि इस मुद्दे को नजरअंदाज किया जाए?

नगर पालिका से लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक—सभी विभागों की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर फाइलों में साफ-सफाई दिखाई जा रही है, लेकिन हकीकत में हालात बदतर होते जा रहे हैं।

दिल्ली से ज़्यादा प्रदूषण, उन्नाव क्यों पिछड़ रहा?

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण को लेकर समय-समय पर कोर्ट से लेकर सरकार तक सक्रिय हो जाती है। लेकिन उन्नाव में स्थिति इतनी गंभीर होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या छोटे शहरों की जनता की जान की कीमत नहीं है?

उन्नाव में PM2.5 और PM10 जैसे खतरनाक प्रदूषण तत्वों का स्तर कई बार राष्ट्रीय मानकों से कहीं ज्यादा दर्ज किया गया है। लेकिन कोई अलर्ट जारी नहीं होता, कोई मास्क बांटने की पहल नहीं होती, कोई एंटी-स्मॉग गन नहीं चलाई जाती।

जनता पूछ रही है: कौन है जिम्मेदार?

क्या प्रदूषण के पीछे राजनीति और पैसे का खेल है?

क्या विधायक की चुप्पी इस ‘साठगांठ’ का संकेत है?

क्या डीएम और नगर पालिका की निष्क्रियता एक सोची-समझी रणनीति है?

क्या उन्नाव की जनता को केवल वोट बैंक समझा जा रहा है?