नलों और हैंडपंपों से झागदार और बदबूदार पानी निकल रहा है, जिसकी जांच के बाद पता चला कि इसमें फ्लोराइड की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
फ्लोराइड युक्त पानी से हो रही हैं ये बीमारियाँ
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, लंबे समय तक फ्लोराइड युक्त पानी पीने से निम्नलिखित बीमारियां होती हैं:
डेंटल फ्लोरोसिस: दांतों में काले या भूरे धब्बे, टूट-फूट
स्केलेटल फ्लोरोसिस: हड्डियों में कमजोरी, चलने-फिरने में दिक्कत
त्वचा रोग: खुजली, चकत्ते, संक्रमण
पाचन तंत्र के रोग: पेट दर्द, दस्त, उल्टी
गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर असर
गांवों में महिलाएं बांझपन और गर्भपात जैसी समस्याओं से परेशान हैं, तो बच्चों में पढ़ाई में ध्यान न लगना और मानसिक मंदता के मामले बढ़ रहे हैं।
प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की दास्तान
स्थानीय निवासियों ने कई बार जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस समस्या से अवगत कराया, लेकिन हर बार सिर्फ खानापूर्ति की गई।
सूत्रों के मुताबिक, कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों को स्लॉटर हाउस मालिक हर महीने मोटी रकम देते हैं ताकि कोई कार्रवाई न हो। इसी वजह से ये फैक्ट्रियां बिना वेस्ट ट्रीटमेंट और मानकों के धड़ल्ले से चल रही हैं।
क्या कहते हैं डॉक्टर और विशेषज्ञ?
डॉ. आशीष (उन्नाव जिला अस्पताल):
"हमने हाल के महीनों में फ्लोरोसिस के केस दोगुने देखे हैं। यह पानी से जुड़ा संकट है। इलाज संभव है लेकिन जब तक पानी साफ नहीं होगा, हालात नहीं सुधरेंगे।"
उन्होंने सुझाव दिया कि ग्रामीणों को उबालकर या RO फिल्टर के पानी का उपयोग करना चाहिए और स्वास्थ्य विभाग को गांव-गांव जांच अभियान चलाना चाहिए।
समाधान क्या हो सकता है?
सभी स्लॉटर हाउस की जांच और बिना लाइसेंस वाले बंद हों
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सक्रियता बढ़े और ऑनलाइन ट्रैकिंग सिस्टम लागू हो
जल परीक्षण अभियान और हर गांव में आरओ यूनिट की व्यवस्था हो
स्वास्थ्य विभाग द्वारा मुफ्त जांच शिविर लगाए जाएं
दोषी अधिकारियों और फैक्ट्री मालिकों पर सख्त कार्रवाई हो
ग्रामीणों की आवाज अब वेबसाइट और सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार तक पहुंच रही है। सवाल यह है कि क्या अब भी प्रशासन जागेगा?
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