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उन्नाव शहर में बढ़ता अपराध: गुंडे, माफिया और सियासी संरक्षण

 

लेख: प्रशांत त्रिपाठी, संपादक

उन्नाव, उत्तर प्रदेश।
उन्नाव जनपद के शहर क्षेत्र में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। गांजा तस्करी से लेकर शराबी तत्व, सड़कछाप गुंडे, संगठित माफिया और यहां तक कि राजनीतिक माफिया तकसभी सक्रियता के साथ काम कर रहे हैं। यह स्थिति अब केवल कानून व्यवस्था तक सीमित नहीं रही, बल्कि समाज की उस व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं जो इन अपराधियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संरक्षण देती है।

चौंकाने वाली बात यह है कि इन अपराधियों को शरण देने वाले लोग कोई और नहीं, बल्कि जनपद के ही बड़े राजनीतिक चेहरे हैं। केवल पार्टी विशेष का फर्क होता है, लेकिन इन नेताओं की निकटता हर गली-मोहल्ले में सक्रिय गुंडों और माफियाओं से साफ देखी जा सकती है।


पुलिस की भूमिका पर भी सवाल

यह कहने में अब कोई संकोच नहीं रहा कि पुलिस प्रशासन पूरी तरह इन गतिविधियों से अछूता नहीं है। अनेक बार देखा गया है कि पुलिसकर्मी, विशेषकर कुछ आरक्षी, इन अपराधियों के सहयोगी के रूप में कार्य करते हैं। उनके लिए यह "ऊपरी कमाई" का प्रमुख जरिया बन चुका है। यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति इन अपराधों का विरोध करता है या सवाल उठाता है, तो उसे धमकी, गाली-गलौज या यहां तक कि जानलेवा हमले तक का सामना करना पड़ता है।

जनपद में कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां सिविल पुलिसकर्मी अपराधियों के खुल्लमखुल्ला सहयोगी के रूप में देखे जाते हैं। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब ऐसे पुलिसकर्मी कानून का पालन करने के बजाय सत्ता और दबंगई का पक्ष लेते हैं।


पत्रकारों पर बढ़ता खतरा

शहर की कुछ चौकियों में कार्यरत सिपाही कुख्यात युवाओं को संरक्षण देने में लगे हैं। जब कोई पत्रकार इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसे या तो समझौते के लिए मजबूर किया जाता है या फिर उसकी जान को खतरा हो जाता है।

यद्यपि कुछ उपनिरीक्षक अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से कर रहे हैं, परंतु आरक्षियों की भूमिका के कारण पूरी पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठते हैं।


सवाल यह है कि दोषी कौन?

क्या दोष उन नेताओं का है जो इन अपराधियों को खुला संरक्षण देते हैं? या फिर उन सामाजिक प्रतिनिधियों का जो ईमानदारी का चोला ओढ़कर समाज में नेतृत्व का दिखावा करते हैं? दोनों ही स्थितियां समाज के लिए घातक हैं।

यह डर अब गहराने लगा है कि जिस जनपद को कभी "कलमकारों की धरती" कहा जाता था, कहीं वह अब "गुंडों-माफियाओं की धरती" के रूप में पहचाना जाने लगे।

अब आवश्यकता इस बात की है कि जनपद के युवाओं को एक नई दिशा दी जाए। इसके साथ ही पुलिसिया व्यवस्था में पारदर्शिता लाकर उसे सुधारने की आवश्यकता है। समाज के प्रत्येक जागरूक नागरिक को इस गिरते तंत्र के विरुद्ध खड़ा होना होगा, वरना हालात और बदतर हो सकते हैं।

 

"अपराध पर मौन समर्थन भी अपराध को बढ़ावा देने के समान है। अब वक्त है कि उन्नाव फिर से अपने मूल्यों की ओर लौटेजहां कलम की ताकत, बंदूक और भय पर भारी हो।"