प्रयागराज। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को व्यक्तिपूजा से ऊपर उठकर राष्ट्रपूजा पर आधारित संगठन बताते हुए अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वांत रंजन ने कहा कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन ही संघ का जीवन-चरित्र है। यह विचार उन्होंने उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के सरस्वती परिसर में आयोजित “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: विचार एवं व्यवहार” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किए।
कार्यशाला का आयोजन शुक्रवार को हुआ, जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी और छात्र-छात्राओं की उल्लेखनीय सहभागिता रही। कार्यक्रम का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक पृष्ठभूमि, संगठनात्मक संरचना, ऐतिहासिक विकास और समकालीन सामाजिक भूमिका को अकादमिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना था।
उद्घाटन सत्र: डॉ. हेडगेवार के जीवन पर विस्तृत प्रकाश
मुख्य वक्ता स्वांत रंजन ने अपने संबोधन में डॉ. हेडगेवार की देशभक्ति, स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका, पत्रकारिता के माध्यम से जनजागरण और 1925 में संघ स्थापना के उद्देश्यों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि संघ का मूल दर्शन राष्ट्र के प्रति समर्पण है और यही कारण है कि संगठन व्यक्तिपूजा के बजाय राष्ट्रपूजा को केंद्र में रखता है।
उन्होंने महिलाओं की सहभागिता पर बात करते हुए राष्ट्र सेविका समिति के योगदान को भी रेखांकित किया और कहा कि समाज के सर्वांगीण विकास में महिलाओं की भूमिका अपरिहार्य है।
अध्यक्षीय संबोधन: समकालीन चुनौतियों के समाधान में संघ विचार
अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत्यकाम ने कार्यशाला को अत्यंत प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि संघ के विचार वर्तमान सामाजिक चुनौतियों के समाधान में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्र की आत्मा बताते हुए विश्वविद्यालय के अकादमिक प्रयासों की सराहना की और कहा कि ऐसे कार्यक्रम विद्यार्थियों में वैचारिक समझ और विमर्श की संस्कृति को सुदृढ़ करते हैं।
प्रथम तकनीकी सत्र: व्यक्ति-निर्माण से राष्ट्र-निर्माण
प्रथम तकनीकी सत्र में मुख्य वक्ता क्षेत्रीय धर्म जागरण प्रमुख (पूर्वी उत्तर प्रदेश) अभय ने भारतीय शिक्षा पद्धति, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संघ की कार्यप्रणाली पर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि संघ व्यक्ति-निर्माण के माध्यम से दीर्घकालिक राष्ट्र-निर्माण की अवधारणा पर कार्य करता है। संघ की शाखा प्रणाली, शारीरिक–बौद्धिक प्रशिक्षण, व्यवस्था वर्ग, खेल, गीत, कहानी और अनुशासन आधारित गतिविधियों को उन्होंने राष्ट्रभाव जागरण का प्रभावी माध्यम बताया।
उनका कहना था कि धर्म, संस्कृति और राष्ट्र एक-दूसरे से अभिन्न हैं और इन्हें अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता।
अंतिम सत्र: एकात्म समाज और एकात्म राष्ट्र की अवधारणा
अंतिम सत्र में मुख्य वक्ता मनोज कांत, निदेशक—राष्ट्रधर्म ने संघ साहित्य और संदर्भ ग्रंथों का उल्लेख करते हुए भारतीय नवजागरण, एकात्म समाज और एकात्म राष्ट्र की अवधारणा पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि संघ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विषयों को वर्गीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दृष्टि से देखता है और सेवा कार्यों के माध्यम से मानवीय मूल्यों को वैश्विक स्तर पर सशक्त करता है।
आयोजन, संचालन और सहभागिता
कार्यशाला के कार्यक्रम समन्वयक प्रो. सत्यपाल तिवारी ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोहनी देवी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. छत्रसाल सिंह ने प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम संयोजक प्रो. संतोष कुमार, आयोजन सचिव प्रो. आनंदानंद त्रिपाठी और सह-आयोजन सचिव डॉ. त्रिविक्रम तिवारी ने बताया कि कार्यशाला में मिले मार्गदर्शन और सुझाव आगामी सत्र से प्रारंभ होने वाले कार्यक्रमों के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे।
कार्यशाला में विश्वविद्यालय की समस्त विद्याशाखाओं के निदेशकगण, आचार्यगण, शोधार्थी और छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। अंत में विशेषज्ञों ने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए।
समग्र रूप से यह कार्यशाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार, व्यवहार और पाठ्यक्रम को ऐतिहासिक, वैचारिक और व्यवहारिक दृष्टि से समझने में उपयोगी सिद्ध हुई।





