उत्तर प्रदेशचित्रकूट

चित्रकूट में महर्षि वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई गई, वाल्मीकि आश्रम में हवन-पूजन और रामायण पाठ से गूंजा वातावरण

चित्रकूट में रविवार को रामायण के रचयिता आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती आस्था, श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई गई। पूरे जिले में सुबह से ही धार्मिक माहौल देखने को मिला। शिलापुरी स्थित वाल्मीकि आश्रम में पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के तत्वावधान में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जहाँ महर्षि वाल्मीकि के चित्र की पूजा-अर्चना, आरती और प्रतिमा पर फूलमाला अर्पित कर हवन-पूजन संपन्न हुआ। वातावरण “जय वाल्मीकि” और “रामायण पाठ” के मधुर स्वर से गूंज उठा।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साधु-संत, श्रद्धालु और स्थानीय नागरिक शामिल हुए। मुख्य अतिथि के रूप में राज्य मंत्री मनोहर लाल मन्नू कोरी और महंत भरत दास उपस्थित रहे। दोनों अतिथियों ने महर्षि वाल्मीकि के जीवन दर्शन और उनकी शिक्षा को समाज के लिए प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने न केवल रामायण जैसी अमर कृति की रचना की, बल्कि समाज को सत्य, धर्म और मर्यादा के पालन का संदेश दिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चारण और दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इसके बाद बच्चों और स्थानीय कलाकारों द्वारा भक्ति संगीत, रामायण पाठ, और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी गईं। इन कार्यक्रमों ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया।

क्षेत्रीय पर्यटन उप निदेशक आर.के. रावत ने बताया कि “चित्रकूट जिले के विभिन्न मंदिरों और आश्रमों में भी रामायण पाठ, भजन-कीर्तन और हवन-पूजन का आयोजन किया गया। वाल्मीकि आश्रम के सौंदर्यीकरण का कार्य भी जारी है, ताकि यह स्थान धार्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में और विकसित हो सके।”

उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा वाल्मीकि आश्रम परिसर में प्रकाश व्यवस्था, बागवानी, तथा श्रद्धालुओं के बैठने की सुविधाएँ बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। आने वाले समय में यहाँ एक सांस्कृतिक केंद्र भी स्थापित करने की योजना है, जहाँ रामायण और वाल्मीकि दर्शन पर आधारित प्रस्तुतियाँ नियमित रूप से आयोजित की जाएंगी।

राज्य मंत्री मन्नू कोरी ने अपने संबोधन में कहा कि महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। उन्होंने समाज में समानता, शिक्षा और सत्य के मार्ग का संदेश दिया। “आज हमें उनके आदर्शों को आत्मसात करने की आवश्यकता है ताकि समाज में समरसता और एकता बनी रहे,” उन्होंने कहा।

महंत भरत दास ने कहा कि वाल्मीकि जी ने अपनी तपस्या और साहित्यिक प्रतिभा से न केवल भगवान श्रीराम के आदर्शों को अमर कर दिया, बल्कि मनुष्य को यह सिखाया कि कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का मार्ग कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

इस दौरान श्रद्धालुओं ने वाल्मीकि जी के जीवन से प्रेरित होकर समाज में शिक्षा और सद्भावना फैलाने का संकल्प लिया।

पूरे क्षेत्र में दिनभर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा। रामायण पाठ और भजन-कीर्तन की गूंज से चित्रकूट का वातावरण आध्यात्मिक बन गया। महिलाओं और बच्चों ने भी उत्साह के साथ भाग लिया। आश्रम परिसर को फूलों और रंग-बिरंगी झालरों से सजाया गया था, जिससे पूरा स्थल भक्तिमय और आकर्षक दिखाई दे रहा था।

कार्यक्रम के अंत में महाप्रसाद वितरण किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। स्थानीय प्रशासन ने भी इस अवसर पर सुरक्षा और यातायात की विशेष व्यवस्था की थी।

महर्षि वाल्मीकि जयंती का यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि इसने समाज में एकता, भक्ति और सांस्कृतिक चेतना का संदेश भी दिया।

📍रिपोर्ट – चित्रकूट ब्यूरो

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